Wednesday 20 March 2019

स्मिथ की नई पारी



2015 विश्व कप सेमीफाइनल- भारत और आस्ट्रेलिया। सिडनी क्रिकेट ग्राउंड। आस्ट्रेलिया ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी चुनी। 15 के कुल स्कोर पर डेविड वार्नर आउट हो गए थे। इसके बाद स्टीवन स्मिथ ने मैदान पर कदम रखा और सैंकड़ा जड़ा। 93 गेंदों पर 11 चौके और दो छक्के लगाकर 105 रनों की पारी। वो पारी आसान नहीं थी। विश्व कप का सेमीफाइनल था और मौजूदा विजेता के साथ मुकबला था, लेकिन स्मिथ की वो पारी मेरे दिमाग पर अमिट छाप छोड़ गई।

ना ना, स्मिथ तकनीकी तौर पर बहुत अच्छे बल्लेबाज नहीं हैं, जैसे की मुझे पसंद हैं। उनकी खेलने की शैली अलग है। स्मिथ लेग स्टम्प से ऑफ स्टम्प की तरफ आकर (शफल करना) ऑन साइड पर बेहतरीन शॉट लगा रहे थे तो वहीं गेंदबाज के भांपने पर वो अपने स्टांस में परिवर्तन किए बिना वहीं गेंद को कवर्स, प्वांइट में खेल रहे थे।

इस पारी में मुझे स्मिथ की जो सबसे अच्छी बात लगी वो था उनका टेम्परामेंट और आत्मविश्वास। तकनीक के अलावा यह दोनों चीजें किसी भी खिलाड़ी को महान बनाने के लिए जरूरी हैं। स्मिथ में दोनों प्रचुर मात्रा में थीं। उनके चेहरे पर आत्मविश्वास साफ देखा जा सकता था। स्मिथ के शतक के दम पर आस्ट्रेलिया ने 50 ओवरों में सात विकेट के नुकसान पर 328 रन बनाए। भारत को मात दी और फाइनल में न्यूजीलैंड को हरा आस्ट्रेलिया पांचवीं बार विश्व विजेता बनी।

आस्ट्रेलिया का भारत दौरा- पुणे टेस्ट 2017। माइकल क्लार्क रिटायरमेंट ले चुके थे। स्मिथ अब कप्तान थे और कप्तान के तौर पर उनके सामने भारत को भारत में हराने तथा बल्ले से गरजने की अभी तक की अपने करियर की सबसे बड़ी चुनौती थी। महाराष्ट्र क्रिकेट संघ (एमसीए) की विकेट स्पिनरों के लिए स्वर्ग थी। बेहतरीन टर्न। इस विकेट में वो सब कुछ था जो स्पिनरों को चाहिए होता है। आस्ट्रेलिया के स्टीव ओ कीफ ने इसी के दम पर भारतीय बल्लेबाजों की कमर तोड़ दी थी। भारत दोनों पारियों में एक भी बार 150 का स्कोर पार नहीं कर सका था। इस विकेट पर भारत के पास उस समय टेस्ट के दो दिग्गज स्पिनर रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा थे- नंबर-1 और नंबर-2। इन दोनों के रहते स्पिनरों की मददगार पिच पर स्मिथ दूसरी पारी में 109 रनों की पारी खेल गए और एक बार फिर भारत की हार का कारण बने।

उस विकेट पर अश्विन और जडेजा के सामने उस तरह की पारी खेलना अद्भुद ही था। मेरे लिए किसी भी विदेशी बल्लेबाज की भारत में खेली गई यह सर्वश्रेष्ठ पारी थी। आसान नहीं था इस विकेट पर इस तरह की बल्लेबाजी करना। लेकिन स्मिथ खेल गए। यह उनकी बल्लेबाजी की शैली थी। उनका टेम्परामेंट, उनका आत्मविश्वास।

मार्च 2018 आस्ट्रेलियाई कप्तान स्मिथ पर दक्षिण अफ्रीका में बॉल टेम्परिंग के कारण एक साल का प्रतिबंध लग चुका था। स्मिथ उस समय टेस्ट रैंकिंग में नंबर-1 बल्लेबाज थे और लगतार रन बना रहे थे।

यह एक साल का प्रतिबंध 28 मार्च-2019 को खत्म हो रहा है और स्मिथ आईपीएल में वापसी कर रहे हैं। साल भर बाद भी स्मिथ टेस्ट रैंकिंग में टॉप-5 से बाहर नहीं हुए। हां नंबर-1 से नंबर-4 पर जरूर आ गए हैं। यह बताता है कि स्मिथ किस तरह की फॉर्म में थे और अभी तक लगातार खेल रहे होते तो इसकी बहुत संभावना है कि नंबर-1 पर ही होते।

स्मिथ बेशक विराट कोहली, केन विलियम्सन और मौजूदा दौर के शानदार बल्लेबाजों की तरह तकनीक में श्रेष्ठ न हों, लेकिन जहां मजबूत मानसिकता, चारों तरफ रन बनाने की कला, गेंदबाजों को भांपने और उन पर हावी होने की कला जैसी चीजों की बात आती है तो स्मिथ इसमें किसी भी तरह पीछे नहीं हैं।

टेस्ट में 61.37 की औसत से 64 मैचों में 6199 रन और 23 शतक। यह आंकड़े आसान नहीं हैं। स्मिथ की बल्लेबाजी उठा कर देख लीजिए। उन्होंने शायद ही ऐसी विदेशी जमीन छोड़ी जहां रन नहीं किए हैं। अब यह बल्लेबाज वापसी कर रहा है। फर्स से अर्श का सफर तय किया था, लेकिन अब एक बार फिर शून्य से शुरुआत। यह आसान नहीं है लेकिन स्मिथ प्रतिबद्ध होकर मैदान पर उतरेंगे।

स्मिथ पर जब प्रतिबंध लगा था तो बुरा जरूर लगा था। ऐसा नहीं है कि स्मिथ, वार्नर या बैनक्रॉफ्ट ने ही बॉल टेम्परिंग की हो। पहले भी ऐसा होता आया है। न ही ऐसा संभव है कि उस टीम में सिर्फ इन तीनों को ही बॉल टेम्परिंग के बारे में पता था या सिर्फ यह तीनों ही ऐसा कर रहे थे। ऐसा कैसे हो सकता है कि गेंद जिन गेंदबाजों के लिए तैयार की जा रही हो वो गेंद को पकड़ यह पता नहीं कर पा रहे हों कि इसमें कुछ हरकतें की जा रही हैं? मेरे लिए इस पर विश्वास करना मुश्किल है। लेकिन इन तीनों ने अपनी गलती मानी और समाने से आकर माफी भी। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि अगर आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री इस विवाद में नहीं कूदते तो शायद इन खिलाड़ियों के साथ ऐसा नहीं होता। प्रधानमंत्री के आने से मामले की गंभीरता बढ़ गई थी और इसिलए सीए को शायद इस तरह का फैसला लेन पड़ा।

स्मिथ कई खिलाड़ियों खासकर भारतीयों के लिए सीखने योग्य बहुत उपयुक्त व्यक्ति हैं। एक ऐसा खिलाड़ी जो एक लेग स्पिनर के तौर पर टीम में जगह बनाता है लेकिन मौजूदा दौरा के सबसे अच्छे बल्लेबाजों में वह खड़ा होता है। वो भी तब जब वह तकनीकी तौर पर उन बल्लेबाजों के मुकाबले काफी पीछे है, लेकिन दृढ़ता, विकेट पर खड़े रहने की जिद, रनों की भूख के मामले में उनके ही समांतर भी है। साथ ही स्मिथ उदाहरण हैं जिस तरह उन्होंने अपनी गलती को कबूल किया और सामने आकर माफी मांगी। भारत में आप किसी खिलाड़ी से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं कर सकते। इगो हर्ट हो जाएगा। दो बार इस देश में मैच फिक्सिंग जैसी घटना हुई लेकिन सभी दिग्गजों ने चुप्पी साधी। उनके मुंह से एक बात नहीं निकलती।

अब स्मिथ वापसी कर रहे हैं और विश्व कप जाने से पहले आईपीएल में खेलेंगे। स्मिथ के सामने चुनौती है कि वह अपने पुराने फॉर्म को बरकरार रखें। ऐसा करना आसान नहीं है क्योंकि एक लंबा गैप किसी भी बल्लेबाज की लय तोड़ने के लिए काफी होता है।

अगर स्मिथ फॉर्म में वापसी कर लेते हैं और उसी तरह की बल्लेबाजी करते हैं जिस तरह की बल्लेबाजी वह करते आ रहे थे, ऐसे में अगर वह विश्व कप में खेलते हैं तो आस्ट्रेलिया को मजबूती मिलेगी। स्मिथ ही अकेले नहीं हैं। अगर डेविड वार्नर भी वह बल्लेबाज बनकर मैदान पर उतरते हैं जो वह पहले थे तो आस्ट्रेलिया खतरनाक है। क्योंकि हाल ही में भारत को उसी के घर में मात देने के बाद आस्ट्रेलिया का आत्मविश्वास बढ़ा है।

स्मिथ और वार्नर उस घायल शेर की तरह हैं जो मौके मिलने पर शिकार के लिए तैयार है। इन दोनों के मन में इस समय कितनी बातें गोता मार रही होंगी। कितने सवालों के समुंदर में यह लोग डूबकियां लगा रहे हैं। क्या होगा? कैसा होगा ? हर्टबीट कितनी तेज होगी। इन दोनों के दौर को समझना हमारे लिए तो ना मुमिकन है। यह दोनों अपने आप को साबित करने के लिए पहले से भी कई ज्यादा प्रतिबद्ध होंगे। शायद अपने पदार्पण मैच से भी ज्यादा। कई सैलाब उमड़ रहे होंगे तो कई तरह की भावना दिमाग में कलह मचा रही होंगी। इसलिए यह दोनों खतरनाक हैं। विपक्षी टीमों के लिए सबसे बड़ा खतरा। पहले आईपीएल में और अगर यहां सफल रहे तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और ज्यादा खतरनाक होंगे। इन दोनों के पास अब नए सपने हैं, नई जिद है। नई पारी का आगाज है। 

वेलकम स्मिथ। उम्मीद है तुम वही होगे जो पहले थे, वक्त के साथ शायद उससे भी बेहतर। एक शानदार और मुश्किल बल्लेबाज।



Friday 15 March 2019

गुमान से बाहर निकलिए, यह विश्व कप है


इस हार की उम्मीद किसी ने नहीं की थी। सभी ने भारत की जीत की उम्मीद की थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। आस्ट्रेलिया ने शुरुआती दो मैच हारने के बाद भी लगातार तीन मैच जीत भारत को वो पटखनी दी जिसे वो लंबे समय तक याद  रखेगी। 

ऐसा नहीं है कि क्रिकेट में हार नई बात हो। खेल में हार जीत का सिलसिला चलता रहता, लेकिन यह हार उस समय आई जब आप विश्व क्रिकेट में सबसे मजबूत टीम माने जाते हो। यह हार तब आई जब आप विश्व कप के लिए तैयारी कर रहे हो और विश्व कप जीत के प्रबल दावेदार भी माने जा रहे हो। 

यह हार आपको अपने अंदर झांकने का मौका देती है। बताती है कि अभी तक आप कई मुगालतों में जी रहे थे। उन मुगालते में जिसमें आपको लगता है कि आपकी बल्लेबाजी सबसे मजबूत है। एक समय हुआ करता था जब भारत की बल्लेबाजी बेहद मजबूत हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। 

आपके पास क्लास बल्लेबाज हैंं, लेकिन वो मैदान पर क्लास में कभी-कभी आते हैं। बल्लेबाजों में निरंतरत की कमी आपको दिख नहीं रही है। कोहली के अलावा भारतीय टीम में कोई ऐसा बल्लेबाज नहीं है जो लगातार रन बना रहा हो। बीते दो साल मे ंअधिकतर मौकों पर हुआ भी यही है। कोहली आउट तो भारत की नैया डूबी। कभी कभार धोनी, जाधव या कोई और तुक्के में बचा ले जाता है, लेकिन ऐसा इक्का दुक्का ही होता है। 

300 के पार के लक्ष्य को टीम बमुश्किल हासिल कर पाती है और 270-280 के लक्ष्य को भी हासिल करने में पसीने छूट जाते हैं। यहां भी अगर कोहली आउट तो जैसे-तैसे ही जीत मिलती है। कमी कहां हैं। कमी बल्लेबाजी में है। उस बल्लेबाजी में जिसका डंका आप दुनिया में बजाना चाहते हो और बजाते भी हो। 

कई बार ऐसा देखने को मिला है कि टॉप-3 कोहली, रोहित, धवन तीनों फेल होते हैं तो आपकी हार लगभग तय़ होती है। मध्यक्रम में नंबर-4 की खोज आपकी खत्म नहीं हो रही है। कोई न कोई आता-जाता रहता है। हार के बाद भी कप्तान का बयान आता है कि इस हार से हम निराश नहीं है। टीम प्रबंधन कहता हैं कि विश्व कप की टीम लगभग तय है। अगर यही टीम जो आस्ट्रेलिया से अपने घर में हारी है वही विश्व  कप जाएगी तो इस देश में क्रिकेट की समझ रखने वाले से पूछ लीजिए कि उसकी क्या राय है। 

विश्व कप से पहले घर में मिली करारी हार ने आपको झकझोरा नहीं है तो पता नहीं आप किस दुनिया में जी रहे हैं। इस तरह के बयान यही बतात हैं कि आप गुमान में हैं। आप अभी भी मान रहे हैं कि आप जो कर रहे हैं वो सही है। बाकी टीमें फिसड्डी हैं, हम जो टीम लेकर जाएंगे उससे तो हम उन्हें हरा ही देंगे। आपके बयानों के बाद एक ही शब्द दिमाग में आता है। अति आत्मविश्वास। 

आपके पास समय था बल्लेबाजी में कमी को पूरा करने का, लेकिन आसान जीतों में इतिहास खोजने में आप इतने मशगूल थे कि कमियां दिखीं नहीं। ऊपर से पसंदीदा खिलाड़ियों की फेहरिस्त ने आपको कहीं और देखने नहीं दिया। 

मन मर्जी करने की फुर्सत मिलने पर कई बार ट्रेनिंग भी नहीं की तो विदेशी दौरों पर अभ्यास मैच भी उतने नहीं खेले जितने जरूरी थे। कम से कम इस गलती को माना तो था। 

लेकिन बाकी गलतियों का क्या ? कभी ओस तो कभी टीम चयन के कंधे पर जिम्मेदारी ़डालने से पहले आपको सोचना चाहिए कि आपकी कोशिश विश्व की ऐसी टीम बनने की है जो हर परिस्थिति में जीत सकती हो। कई बार तो आपने अपने आप को मौजूदा समय की सबसे अच्छी टीम बता भी दिया है, लेकिन आपको यह समझने की जरूरत है कि विश्व चैम्पियन बनने का सपना रखने वाली या विश्व चैम्पियन कहलाने वाली टीमें हार के लिए परिस्थितियों का बहाना नहीं देतीं। उदाहरण के तौर पर आस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज को ही ले लीजिए। अपने दौर मे ंइन टीमों ने अपने घर से बाहर भी कई जीतें हासिल कीं। 

विश्व कप में जाने से पहले आंखे खोल लीजिए और हकीकत में आ जाइए, हालांकि अब ,समय लगभग खत्म है। इस सीरीज से पहले आपको जितने जबाव देने थे, सीरीज के बाद उससे कई ज्यादा सवाल अब आपके सामने हैं। 

विश्व कप में जाने से पहले आपके पास नंबर-4 का मजबूत खिलाड़ी नहीं दिख रहा है। आपने प्रयोग भी किए लेकिन विफल रहे। वहां लंबे समय से चिंता है। धवन और रोहित के प्रदर्शन में निरंतरता नहीं दिखी, लेकिन उससे भी बड़ी बात तीसरे ओपनर का मजबूुत विकल्प आपके पास नहीं है। लोकेश राहुुल को आप यहां आजामा सकते हैं लेकिन बीते मैचों में उनका प्रदर्शन राहुल को विकल्प तो नहीं बताता है। बाकी आपकी मर्जी. 

धोनी के बाद विकेटकीपिंग में दूसरा विकल्प भी टीम के पास नहीं है। युवा ऋषभ पंत को आप आजमा चुके जो विकेट के पीछे कितने सफल हुए यह सभी ने देखा। फिरोज शाह कोटला में तो उनका गेंद को फर्स्ट टाइम में पकड़ना भी मुश्किल हो रहा था। 
टॉप ऑर्डर के फेल होने के बाद मिडिल ऑर्डर में कौन पारी संभालेगा? या फिर धोनी/ जाधव को अकेले लड़ना होगा (कभी-कभार)। 

हां एक बात का श्रेय टीम को देना होना। एक बेहतरीन गेंदबाजी आक्रमण तैयार करने के लिए। आपके पास विश्व स्तरीय तेज गेंदबाज हैं। बेहतरीन स्पिनर हैं। भारत ने हालिया दौर में जितनी जीतें हासिल की हैं उनमें से आधी से ज्यादा जीतों का श्रेय गेंदबाजों को जाता है जिन्होंने सामने वाली टीम को बड़ा स्कोर बनाने नहीं दिया और बल्लेबाजों के लिए बोर्ड पर ज्यादा रन छोड़े नहीं, लेकिन जिस दिन गेंदबाजों ने ऑफ डे देखा आपके बल्लेबाजों का ऑफ डे तय लगा। गेंदबाजी में भी हालांकि आपके पास चौथे तेज गेंदबाज का मजबूत विकल्प नहीं है, लेकिन जो गेंदबाज हैं वो मिलकर इसकी भरपाई कर सकते हैं। बल्लेबाजी में ऐसा दिख नहीं रहा है।  

इसलिए वो बल्लेबाज बनाइए जो निरंतर रन कर सकें, 10-8 मैचों में से एक-दो मैचों में नहीं। 

खैर! आईपीएल आ गया है। ड्रामा शुरू। 


Monday 11 June 2018

न थकने वाला जुनूनी नडाल



वो कोर्ट पर आता है। कदमों को नापते हुए अपनी जगह लेता है। रैकेट से गेंद को जमीन पर मारता है और तब तक माथे पर बंधी पट्टी के साइड से एक हाथ से बालों को कानों के पीछे करता है। बाल पीछे करने के बाद गेंद हाथ में लेता है। जमीन पर 6-7 दफा मारता है और फिर हवा में उचकते हुए बाएं हाथे से झन्नाटेदार सर्विस करता है। उसे क्ले कोर्ट का बादशाह कहते हैं- राफेल नडाल।

Courtsey : Google
बादशाह उसे ऐसे ही नहीं कहा जाता। लाल बजरी पर इस इंसान ने 11 खिताब जीते हैं। यहां उसका कोई सानी नहीं है। क्ले कोर्ट पर नडाल ने सबसे ज्यादा खिताब जीते हैं। एक दशक से ज्यादा,  लगातार बिना रुके, बिना थके एक ही काम वही शिद्दत से करना जिस शिद्दत से पहली बार किया था। ऐसा वही कर सकता है जिसमें कुछ करने की भूख हो और पागलों की तरह जुनून। नडाल में दोनों हैं तभी 17 ग्रैंड स्लैम उनकी झोली में हैं। वैसे एक और खिलाड़ी हैं जिनमें यह सभी खूबियां हैं, उनका नाम है रोजर फेडरर, लेकिन उन पर लिखाई किसी और दिन अभी जिक्र सिर्फ नडाल का।

लोग एक दशक से लाल बजरी पर सिर्फ उन्हें ही चैम्पियन देखते हैं। नडाल जब उतरें हैं चैम्पियन बने हैं। क्ले कोर्ट पर कोई उन्हें कभी नहीं रोक सका। वह बेहद आसानी से मिट्टी पर किसी को भी मात देते हैं, चाहें फेडरर हों, जोकोविक हों या मरे। आज के टेनिस में नडाल के साथ इन तीनों से बड़ा नाम नहीं हैं, लेकिन क्ले कोर्ट पर यह तीन दिग्गज नडाल से पीछे ही रहे हैं बाकियों की बात ही बेमानी है। लेकिन क्या यह इतना आसान है। जाहिर सी बात है नहीं। नडाल के खेल को देख कर जीत जितनी आसान लगती है हकीकत की किताब में उसमें जीत की भूख और अपार जुनून के साथ लगन है।

एक दशक से नडाल के न तो जुनून में कमी आई है न ही उनकी खिताब जीतने की भूख में। एक समय ऐसा भी था जब कई दिग्गजों ने नडाल का करियर खत्म बता दिया था। कुछ साल पहले जब राफा चोटों से जूझ रहे थे और वापसी करने के बाद फॉर्म के लिए संघर्ष कर रहे थे तभी आवाजें उठीं थी कि नडाल खत्म है, लेकिन कई महान खिलाड़ियों की तरह नडाल ने भी सारी आवाजों को ताबूत में डाल दफना दिया।

एक खिलाड़ी हकीकत में पागल होता है। वो कब कहां से वापसी कर जाए यह कहना मुश्किल है। वो कहां से अपने खेल के स्तर के एक नए मुकाम पर ले जाए वो बता पाना मुमकिन नहीं। उसमें जुनून, सनक, जज्बा कूट-कूट के भरा होता है और इन्हें हमेशा अपने अंदर रखने वाला ही महान बनता हैं, जो राफा हैं। इस तरह का खिलाड़ी कभी हार नहीं मानता और इसिलए उस पर अपनी आलोचनाओं का असर भी नहीं होता। राफा भी इन्हीं खिलाड़ियों में से एक हैं। एक अकेला इंसान जो लाल बजरी की अपनी बादशाहत को दिन ब दिन पुख्ता करता जा रहा। ऐसे रिकार्ड बनाते जा रहा है जिसे तोड़ना नमुमकिन सा लगता है। नडाल बेशक आज 32 साल के हो गए हैं, लेकिन आज भी उनमें 19 साल वाला नडाल दिखता है।

यह इंसान थकता नहीं है। तभी बुरे दौर से निकल कर नडाल ने अपने खेल में सुधार ही किया है और पहले से बेहतर टेनिस खेली है। इस बीच नडाल ने क्या नहीं देखा। चोटें, आलोचनाएं, यहां तक कि नडाल को खड़ा करने वाले अंकल टोनी भी नडाल के पास से रुखसत हो लिए लेकिन नडाल रूके नहीं, उनका जुनून खत्म नहीं हुआ और उनको देखकर अभी तक तो लगता नहीं के चमचमाती ट्रॉफियों को अपने हाथों से उठाने की उनकी ललक कम हुई है। नहीं, वो आज भी वैसे ही है जैसी पहले थी।

उन्होंने जुनून और जीत की भूख की परिभाषा को कई मायने में बदल कर रख दिया है। वो आते हैं और हर साल फ्रेंच ओपन के फाइनल में किसी को हराते हैं और अपने घर के शोकेस में सजाने के लिए एक और ट्रॉफी ले जाते हैं।

राफा के लिए शायद शब्दों में विशेषण की कमी पड़ जाए, लेकिन उनकी ललक में कभी कमी नहीं दिखेगी। 11वां खिताब जीत कर जब वो फिलिप चाट्रियर कोर्ट से बाहर जा रहे होंगे तो वहां कि मिट्टी से वादा करके गए होंगे कि मैं अगले साल फिर आऊंगा और 12वां खिताब लेकर जाऊंगा।

नडाल जैसे जुनूनी खिलाड़ी कम होते हैं और जो होते हैं वो बादशाह ही कहलाते हैं।